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समुच्चय का संकल्पना (Concept of a Set)

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समुच्चय क्या है? (What is a Set?) हम अपने दैनिक जीवन में प्रायः वस्तुओं के समुह या संग्रह की चर्चा करते हैं, जैसे चाय सेट, ताश के पत्तो की गड्डी, फुटबॉल टीम, भेड़ो का झुण्ड आदि। हमनें समूहो को यहाँ विभिन्न शब्दों- सेट, झुण्ड, टीम, संग्रह, समूह आदि का प्रयोग किया हैं लेकिन गणित में सुविधा के लिए इन शब्दों के स्थान पर समुच्चय शब्द का प्रयोग करते हैं। परिभाषा (Definition) वस्तुओं का सुपरिभाषित समूह या संग्रह को समुच्चय कहते हैं। (A well-defined collection of objects is called a Set.) यहाँ 'वस्तुओं के सुपरिभाषित संग्रह' से यह अर्थ हैं कि संग्रह के अवयव सुनिश्चित (definite) एवं सुस्पष्ट (distinct) हो। उदाहरण के तौर पर क्रिकेट टीम के अच्छे बल्लेबाजो का समूह एक समुच्चय नहीं है क्योंकि यह स्पष्ट रूप नहीं कहा जा सकता हैं कि कौन सा बल्लेबाज अच्छा है या नहीं। अंग्रेजी वर्णमाला के स्वरो (vowels) का समूह एक समुच्चय हैं क्योंकि यह सुनिश्चित तौर पर बताया जा सकता है कि इस समुच्चय के अवयव a, e, i, o, u ही होगा न की कोई व्यंजन (consonant) b, c, d, ...

संतोष, बंजी जम्पिंग और लेक्चर

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संतोष की कहानी, जिसे प्रोफ़ेसर मीना ने बताया कि वह कई लोगों को जरूरी बातें सिखा सकता है। संतोष पहली बार किसी कॉलेज में लेक्चर देने जा रहा था। जब संतोष को पता चला कि उसकी इस क्लास में उससे दोगुनी उम्र के लोग भी होंगे, तो ऐसा लगा जैसे संतोष के पैरों तले की जमीन खिसक गई। वह बोला, मैं उन लोगों के सवालों का जवाब कैसे दूंगा? मैं तो इतना अनुभवी भी नहीं। प्रोफ़ेसर मीना कालेज में डीन थीं। वह संतोष से बोली, क्या तुमने कभी बंजी जंपिंग की है। वही, जिसमें एक ऊंची इमारत से लोग छलांग लगा देते हैं। संतोष बोला, छलांग तो नहीं लगाई है, लेकिन इसके बारे में सुना जरूर है। प्रोफेसर मीना बोली, बंजी जंपिंग की खासियत यह होती है कि उसमें लोगों के पैर एक पतली-सी रस्सी से बांध दिए जाते हैं। जब वह किसी ऊंची इमारत से छलांग लगाते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे सचमुच, बिना किसी सहायता के छलांग लगा रहे हों। जैसे-जैसे नीचे गिरते हैं, लगता है प्राण निकल रहे हैं। लेकिन फिर नीचे पहुंचने से कुछ पल पहले ही वह पतली-सी रस्सी हमें ऊपर खींच लेती है।

अगर तेरा नुकसान हो, तो कहना

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एक दिन मैंने मां के पैर दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, "माँ! तेरी सेवा को तो बड़ा जी चाहता है, पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देती। कहती है- तू जाता है, तो जी घबराने लगता है। तू ही बता मैं क्या करूं?" यह सुनकर मां ने अपने कमजोर हाथों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़ा और भगवान से होठों-होठों में बुदबुदाकर न जाने क्या बात की, फिर बोली, "तू फल की रेहड़ी वहीं छोड़ कर आया कर, हमारे भाग्य का हमें इसी कमरे में बैठकर मिलेगा।" मैंने कहा, "मां, क्या बात करती हो? वहां छोड़ आऊंगा, तो कोई चोर-उचक्का सब ले नहीं जाएगा। और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?" मां कहने लगी, "तू सुबह भगवान का नाम लेकर रेहड़ी को फलों से भर कर वहीं छोड़ आया कर और रोज शाम को खाली रेहड़ी लेकर आया कर, बस। मुझे अपने भगवान पर भरोसा है। अगर तेरा नुकसान हो, तो कहना।"

मेहुल, अक्षय और नौकरी

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अक्षय की कहानी, जिसे अपने घमंड के कारण अच्छे और बुरे का फर्क बहुत देर से समझ में आया। मेहुल और अच्छे स्कूल के समय से दोस्त थे। मेहुल की सोच सुलझी हुई थी। वही अक्षय थोड़ा घमंडी स्वभाव का था। दोनों ने एक साथ पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद मेहुल ने कंप्यूटर हार्डवेयर का अपना काम शुरू कर दिया और अक्षय आईटी कंपनी में नौकरी करने लगा। मेहुल अक्षय को बहुत मानता था। वह हमेशा उससे कहता था, मेरे बिजनेस पार्टनर बन जाओ। हार्डवेयर का काम तो है ही, हम सॉफ्टवेयर भी शुरू कर सकते हैं। लेकिन अक्षय को हमेशा लगता, यह मुझे फंसाने की कोशिश कर रहा है। मेरी अच्छी नौकरी से जलता है और मेरी मेहनत से अमीर बनना चाहता है। मेहुल का काम धीरे-धीरे बढ़ता गया। उसने बाहर से इंजीनियर लाकर सॉफ्टवेयर का काम भी शुरु कर दिया।

गगन, दीप और पिता

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दो भाइयों की कहानी, जिसे उनके पिता ने बताया कि उनके रिश्तों में आई दरार को कैसे भरा जा सकता है। दिल्ली में दो भाई गगन और दीप ने मिलकर एक आईटी कंपनी खोली। गगन मार्केटिंग में तेज था, वही दीप सॉफ्टवेयर बनाने में माहिर था। दीप ने एक सॉफ्टवेयर बनाया, जो लोगों के घर बैठे फायदा पहुंचा सकता था। लेकिन दीप को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह सॉफ्टवेयर लोगों तक पहुंचाया कैसे जाएं और और किस तरह बेचा जाए। मार्केटिंग में माहिर गगन ने इस काम के लिए अपनी सारी महिला दोस्तों की मदद से किटी पार्टियों में उस सॉफ्टवेयर का डेमो दिया। सॉफ्टवेयर काफी चलने लगा और महिलाओं को काफी फायदा होने लगा। यह तरकीब काम करते देखकर दोनों भाइयों ने अपनी कंपनी शुरू कर ली और सॉफ्टवेयर घर-घर तक पहुंचाने लगे। कुछ दिनों तक कंपनी बहुत अच्छी चली, फिर बाजार में उस जैसे और सॉफ्टवेयर भी आने लगे। नतीजन गगन और दीप के सॉफ्टवेयर की सेल होने लगी और धंधा मंदा होने लगा।

मायरा, किमी और झूठ

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किमी की कहानी, जिसे कॉलेज के अंतिम दिन यह एहसास हुआ कि झूठ बोलना मुसीबतों को आमंत्रण देना है। मायरा और किमी सहेलियां थी। मायरा के पिता उद्योगपति थे, जबकि किमी के पिता मामूली नौकरी करते थे। किमी अपना ज्यादातर समय मायरा के ही घर पर बिताया करती थी। किमी को एक विदेश यात्रा का मौका मिला। यह यात्रा स्कॉलरशिप के आधार पर थी, इसलिए खर्च की कोई चिंता नहीं थी। मायरा भी किमी के लिए बहुत खुश थी। विदेश यात्रा के दौरान किमी को महसूस हुआ कि उसके साथ जा रहे ज्यादातर लोग अमीर परिवारों के थे। जाने क्यों, जिंदगी में पहली बार उसने खुद को बहुत छोटा महसूस किया। उसे लगा कि अगर उसने सबको बता दिया कि वह गरीब परिवार से है, तो शायद उसके प्रति सब का बर्ताव बदल जाएगा। जब साथ के छात्रों ने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा, तो किमी ने अपने परिवार के बजाय मायरा के परिवार के बारे में बता दिया। लोग उसके परिवार से काफी प्रभावित हुए और किमी को उस उद्योगपति की बेटी मानने लगे। किमी ने भी इसे कभी नहीं नकारा। संयोग ऐसा हुआ कि विदेश यात्रा के समय के कुछ साथी भी उसी कॉलेज में पढ़ने लगे। किमी समझ नहीं पा रही थी कि यदि उ

बच्चे, मास्टर जी और चॉकलेट

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एक शिक्षक की कहानी, जिन्होंने चॉकलेट बांटकर बच्चों को लालच से बचने का पाठ सिखाया। श्रेयस कक्षा छह में पढ़ता था। एक दिन मास्टर साहब छात्रों को कुछ समझाते हुए बोले, इसलिए तो कहता हूं, लालच बुरी बला है। श्रेयस मास्टर जी से बोला, मास्टर जी, लेकिन हम तो बच्चे हैं। हम थोड़े लालच करते हैं। मास्टर जी बोले। लालच की कोई उमर थोड़े होती है। श्रेयस बोला, लेकिन हमें तो पता भी नहीं, लालच होती क्या है। फिर हम लालच कैसे कर सकते हैं। मास्टर जी बोले, अच्छा यह सब छोड़ो, आज मैं सभी बच्चों के लिए चॉकलेट ले कर आया हूं। अब तुम बस इतना-सा काम कर दो कि सभी बच्चों में इन चॉकलेट को बांट दो। और जो चॉकलेट बच गई, वे सब तुम्हारी। लेकिन शर्त सिर्फ इतनी है कि तुम अपनी चाकलेट तभी लोगे, जब बाकी सारे बच्चों को चॉकलेट मिल जाएगी। श्रेयस खुश हो गया कि आज तो उसको ढेर सारी चॉकलेट मिलने वाली है, क्योंकि क्लास में बच्चे सिर्फ बीस थे और चॉकलेट तो पचास से भी ज्यादा थी। श्रेयस ने बच्चों में चॉकलेट बांटना शुरु किया।

औरत, तोता और पिंजड़ा

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एक तोते की कहानी, जिसने अपनी चतुराई से एक दुष्ट महिला के चुंगल से मुक्ति पाई। चंचल बहुत दुष्ट औरत थी। उसने एक तोता पाल रखा था। वह तोता बहुत अच्छा गाता था। चंचल दिन-रात उसका गाना सुनती रहती थी। पर तोता चंचल से परेशान हो गया था। वह पिंजरे से मुक्ति चाहता था। एक बार जब चंचल घर में नहीं थी, तो एक उल्लू तोता से मिलने आया। तोते ने उल्लू से अपनी व्यथा सुनाई। उल्लू ने कहा, मैं तुम्हारी मदद तो नहीं कर सकता, पर मैं जंगल जा रहा हूं। यदि तुम्हारे परिवार वालों को कोई संदेश भेजना हो, तो मुझे बता दो। तोता बोला, उनसे कहना, मैं दिन-रात उन्हीं को याद करता रहता हूं। मैं जितने भी गाने गाता हूं, वे उन्हीं की याद में गाता हूं। जाने कब मैं उनको फिर देख पाऊंगा। उन सब के बिना मेरी जिंदगी अधूरी है। यह सुनकर उल्लू ने उड़ान भरी और जंगल पहुंचकर तोते के परिवार को तोते का संदेश सुनाया। तोते का संदेश सुनते हुए उल्लू बोला, अगर आप लोगों के मन में भी तोते के लिए कोई संदेश हो, तो मुझे बताइए।