अगर तेरा नुकसान हो, तो कहना
एक दिन मैंने मां के पैर दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, "माँ! तेरी सेवा को तो बड़ा जी चाहता है, पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देती। कहती है- तू जाता है, तो जी घबराने लगता है। तू ही बता मैं क्या करूं?"
यह सुनकर मां ने अपने कमजोर हाथों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़ा और भगवान से होठों-होठों में बुदबुदाकर न जाने क्या बात की, फिर बोली, "तू फल की रेहड़ी वहीं छोड़ कर आया कर, हमारे भाग्य का हमें इसी कमरे में बैठकर मिलेगा।"
मैंने कहा, "मां, क्या बात करती हो? वहां छोड़ आऊंगा, तो कोई चोर-उचक्का सब ले नहीं जाएगा। और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?"
मां कहने लगी, "तू सुबह भगवान का नाम लेकर रेहड़ी को फलों से भर कर वहीं छोड़ आया कर और रोज शाम को खाली रेहड़ी लेकर आया कर, बस। मुझे अपने भगवान पर भरोसा है। अगर तेरा नुकसान हो, तो कहना।"
ढ़ाई साल हो गए, सुबह रेहड़ी लगा आता हूं और उस पर एक संदेश होता है- "घर में कोई नहीं है। मेरी बूढ़ी मां बीमार है। थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और हाजत कराने के लिए घर जाना पड़ता है। अगर आपको जल्दी हो, तो अपनी इच्छा से फल तौल लें, पैसे गत्ते के नीचे रख दें। साथ ही मूल्य भी लिखे हुए हैं।" लोग फल ले जाते हैं व पैसे रख जाते हैं। कुछ भी ऊपर नीचे नहीं होता। कभी कोई मां के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज। एक डॉक्टर साहब अपना कार्ड छोड़ गए, पीछे लिखा था, "मां का तबीयत नाजुक हो, तो मुझे कॉल करना, मैं आ जाऊंगा।"
यह मेरी मां की सेवा का फल है या मां की दुआओं की शक्ति, नहीं जानता।
Source- Newspaper Amar Ujala Page no.15 (Abhiyan), Date: 03rd Dec, 2017
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