मायरा, किमी और झूठ

किमी की कहानी, जिसे कॉलेज के अंतिम दिन यह एहसास हुआ कि झूठ बोलना मुसीबतों को आमंत्रण देना है।
मायरा और किमी सहेलियां थी। मायरा के पिता उद्योगपति थे, जबकि किमी के पिता मामूली नौकरी करते थे। किमी अपना ज्यादातर समय मायरा के ही घर पर बिताया करती थी। किमी को एक विदेश यात्रा का मौका मिला। यह यात्रा स्कॉलरशिप के आधार पर थी, इसलिए खर्च की कोई चिंता नहीं थी।
मायरा भी किमी के लिए बहुत खुश थी। विदेश यात्रा के दौरान किमी को महसूस हुआ कि उसके साथ जा रहे ज्यादातर लोग अमीर परिवारों के थे। जाने क्यों, जिंदगी में पहली बार उसने खुद को बहुत छोटा महसूस किया। उसे लगा कि अगर उसने सबको बता दिया कि वह गरीब परिवार से है, तो शायद उसके प्रति सब का बर्ताव बदल जाएगा। जब साथ के छात्रों ने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा, तो किमी ने अपने परिवार के बजाय मायरा के परिवार के बारे में बता दिया। लोग उसके परिवार से काफी प्रभावित हुए और किमी को उस उद्योगपति की बेटी मानने लगे। किमी ने भी इसे कभी नहीं नकारा। संयोग ऐसा हुआ कि विदेश यात्रा के समय के कुछ साथी भी उसी कॉलेज में पढ़ने लगे। किमी समझ नहीं पा रही थी कि यदि उसका झूठ सामने आया, तो वह क्या करेगी। वैसे मैं उसकी स्कॉलरशिप जब्त हो जाएगी और शायद उसे कॉलेज से भी निकाल दिया जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब कॉलेज का अंतिम दिन आया, तो छात्रों को डिग्री देने के लिए मायरा के पिता को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया। किमी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उसे पता था कि अब उसका झूठ पकड़ा जाएगा। जब किमी को डिग्री मिलने का वक्त आया, तब मायरा के पिता बोले, अब मैं मेरी बेटी किमी को बुलाना चाहूंगा। किमी, तुमने हम सब का नाम रोशन किया है। कुछ पलों के लिए जैसे किमी की सांसें वही थम गई। मायरा को शुरू से सब कुछ पता था। मायरा ने ही अपने पिता से ऐसा बोलने को कहा था। अगर खुद किमी ने मायरा को सच बता दिया होता, तो उसे ग्लानि नहीं होती।
झूठ बोलना किसी समस्या का समाधान नहीं होता। उससे हानि ही होती है।
Source- Newspaper Amar Ujala, Page no.12 (Pravah), Date: 07th Dec, 2017

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