औरत, बूढ़ा और हीरा
एक बूढ़े की कहानी, जिसे एक औरत ने बताया कि बाहरी चीजों में खुशी ढूंढना व्यर्थ है।
एक खूबसूरत औरत समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी। एक बूढ़ा दूर एक पत्थर पर बैठकर उसे देख रहा था। औरत का चेहरा तेज से चमक रहा था और उसके मुख पर हल्की-सी मुस्कान थी।
बूढ़े ने देखा कि समुद्र की लहरों के साथ हीरे जैसा कोई चमकदार पत्थर छोर पर आ गया। वह औरत वहीं से गुजर रही थी। उसने वह पत्थर उठाकर अपने पर्स में रख लिया। लेकिन उसके हाव-भाव पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। वह वापस रेत पर टहलने लगी, बूढ़ा अपनी जगह से उठा और औरत की तरफ बढ़ने लगा।
औरत के पास जाकर बूढ़े ने कहा, मैंने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?
औरत ने तुरंत अपना पर्स खोला और कुछ खाने को टटोलने लगी। उसने देखा कि बूढ़े की नजर उस पत्थर पर है, जिसे उसने अभी उठाया था। औरत पूरी कहानी समझ गई। उसने फट से वह पत्थर निकाला और बुढ़े को दे दिया। बूढ़ा एकदम भौचक्का रह गया। उसने सोचा, कहीं उसे फंसाने के लिए इसमें औरत की कोई चाल तो नहीं। बूढ़े ने गौर से उस पत्थर को देखा। वह असली हीरा था। बूढ़ा सोच में पड़ गया, अगर यह असली हीरा है, तो इसमें इतनी आसानी से मुझे कैसे दे दिया?
वह औरत अपने रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थी। अब भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। बूढ़े ने एक बार फिर उस औरत को रोका और पूछा, क्या तुम जानती हो कि जो पत्थर तुमने मुझे दिया, वह एक बेशकीमती हीरा है? जिसे पाकर तुम जिंदगी भर खुश रह सकती हो।
औरत बोली, जी हां, मुझे यकीन है कि यह हीरा ही है। लेकिन मेरी खुशी मेरे अंदर है। समुद्र की लहरों की तरह ही दौलत और शोहरत आती जाती रहती है। अगर अपनी खुशी को इनसे जोड़ेंगे, तो आप कभी खुश नहीं रह पाएंगे।
बूढ़े ने वह हीरा उसको वापस देते हुए कहा, यह तुम रखो और मुझे इससे कई गुना ज्यादा कीमती वह भाव दे दो, जिससे तुमने इतनी आसानी से यह हीरा मुझे दे दिया।
अपनी खुशी अपने अंदर ही ढूंढना चाहिए, वह बाहर नहीं मिलेगी।
Source- Newspaper Amar Ujala, Page no.12 (Pravah), Date: 10 Nov, 2017
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