दीपा, रेस्तरां और मैनेजर
एक मैनेजर की कहानी, जिसने दीपा और उसकी सहेलियों को बताया कि खाना बर्बाद करना क्यों नुकसानदेह है।
दीपा अपने कुछ दोस्तों के साथ एक बड़े रेस्तरां में खाना खाने गई थी। सारी सहेलियां बड़े दिनों बाद साथ मिल रही थी। सब एक समय पर नहीं पहुंची थी पहले एक आई, फिर कुछ देर बाद दूसरी, फिर कुछ और देर बाद तीसरी, और इस तरह से गयारह सहेलियां इकट्ठा हो गई।
रेस्तरां में पहले से बता दिया गया था, इसलिए समय की कोई पाबंदी नहीं थी। उन्हें अलग से एक टेबल दे दी गई थी। लगातार महिलाएं आती जा रही थी और कुछ न कुछ नया मंगाती जा रही थी। मैनेजर बार बार उनसे कह रहा था, मैडम शायद ज्यादा हो जाएगा।
लेकिन कोई उसकी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। खाना टेबल पर इकट्ठा होता जा रहा था। कुछ ही देर में जब जाने का वक्त आया, तो दीपा ने बिल मंगाया। बिल आया और बिल की रकम अदा कर सब उठने लगी। लेकिन तभी रेस्तराँ का मैनेजर वहां आ गया और उनसे बचे हुए खाने को खत्म करने या पैक करने की दरख्वास्त करने लगा। दीपा की एक दोस्त बोली, मैं शुरू से देख रही हूं कि आप हम पर जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं। बिल तो हमने अदा कर दिया है न। फिर हम खाएं या ना खाएं, इससे आपको क्या? मैनेजर ने विनम्रता से फिर निवेदन किया कि आपने इस खाने के पैसे दिए हैं। खाने को ऐसा छोड़कर नहीं जाना चाहिए। एक महिला, मैनेजर पर जोर जोर से चिल्लाने लगी। मैनेजर बोला, मैडम, हमारे देश में दस में से आठ लोगों को पेट भर खाना नहीं मिलता। पैसे आपके हैं, उन्हें बरबाद करने की आजादी आपकी है, लेकिन आपको यह हाथ नहीं मिल जाता कि आप खाना बर्बाद करें। आपसे सिर्फ इतना निवेदन है कि आगे से उतना ही खाना मंगाये, जितना आप खा सके। अगर ज्यादा ही मंगाने का शौक है, तो फिर उन्हें ऐसे लोगों तक पहुंचाने की भी व्यवस्था करें, जिन्हे खाना नहीं नसीब होता। एक मिनट के लिए रेस्तरां के सभी लोग स्तब्ध रह गए। तब दीपा बोली, यह हकीकत है। हमें आगे इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
संसाधनों की बेकद्री कभी न कभी हमारी ही जिंदगी पर असर करेगी।
Source- Newspaper Amar Ujala Page no.12 (Pravah) Date: 23 Nov, 2017
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