सदुपयोग
एक समय की बात है कि एक संत थे। आसपास के गांवों में भी उनकी प्रसिद्धि थी। लोग उन्हें काफी मानते थे । एक बार एक नौजवान अनुयायी उनके पास आया और कहा, ' प्रभु ! मुझें आपसे एक निवेदन करना है।'
संत: बताओ क्या कहना हैं?
अनुवायी: मेरे वस्त्र पुराने हो चुके है । अब ये पहनने लायक नहीं रहे। कृपया मुझे नए वस्त्र देने का कष्ट करे !
संत ने अनुयायी के वस्त्र देखे, वे सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे और जगह-जगह घिस चुके थे। इसलिए उन्होंने एक अन्य अनुयायी को नए वस्त्र देने का आदेश दे दिया।
कुछ दिनों बाद संत उस अनुयायी के घर पहुंचे।
संत: क्या तुम अपने नए वस्त्रों में आराम से हो? तुम्हें और कुछ तो नहीं चाहिए?
अनुवायी: धन्यवाद प्रभू मैं इन वस्त्रों में बिल्कुल आराम से हूँ। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
संत: अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र है तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया हैं?
अनुयायी: मैं अब उसे ओढ़ने के लिए प्रयोग कर रहा हूँ।
संत: तो तुमने अपनी पुरानी ओढनी का क्या किया हैं?
अनुयायी: जी मैंने उसे खिड़की पर परदे की जगह लगा दिया है ।
संत: तो तुमने पुराने परदे फेंक दिए?
अनुयायी: जी नहीं, उसके चार टुकड़े किए और उनका प्रयोग रसोई में करता हूं। गरम पतीलों को आग से उतारने के लिए कपड़ो की जरूरत पड़ती है ।
संत: तो फिर रसोई के पुराने कपडों का क्या किया हैं?
अनुयायी: अब मैं उन्हें पोछा लगने के लिए प्रयोग करूँगा ।
संत: तो तुम्हारा पुराना पोंछा कहां है?
अनुयायी: प्रभु वह अब इतना तार -तार हो चुका हैं कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था। मैंने उसका एक-एक धागा अलग करके दिये की बातियां तैयार कर लीं । उन्ही में से एक कल रात आपके कक्ष में प्रकाशित थी।
संत संतुष्ट हो गए कि उनका अनुयायी वस्तुओं को बर्बाद नहीं करता औंर उसे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है।
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